Muzaffarnagar जनपद में महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा को प्राथमिकता देते हुए मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) डॉक्टर सुनील तेवतिया ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है। इस आदेश के तहत, सरकारी और निजी अस्पतालों में महिला मरीजों का स्वास्थ्य परीक्षण या उपचार अब पुरुष डॉक्टरों द्वारा अकेले नहीं किया जाएगा।

इस दिशा-निर्देश के अनुसार, अगर किसी महिला मरीज के साथ महिला तीमारदार उपस्थित नहीं है, तो उस स्थिति में स्वास्थ्य परीक्षण या परामर्श के दौरान अस्पताल में एक महिला स्वास्थ्यकर्मी की उपस्थिति अनिवार्य होगी। यह कदम महिला मरीजों के अधिकारों की रक्षा और संभावित दुव्यवहार की घटनाओं को रोकने के लिए उठाया गया है।

सभी अस्पतालों में महिला शिकायत निवारण समिति आवश्यक

मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने यह भी निर्देश दिया है कि प्रत्येक सरकारी और निजी अस्पताल में एक महिला शिकायत निवारण समिति का गठन किया जाए। समिति के सदस्यों के नाम और उनके दूरभाष नंबर अस्पताल के सूचना पट पर प्रदर्शित किए जाने चाहिए, ताकि किसी भी प्रकार की शिकायत की स्थिति में महिला मरीज सीधे संपर्क कर सकें।

सीएमओ डॉ. तेवतिया ने कहा, “यह कदम महिला मरीजों को एक सुरक्षित और सम्मानजनक माहौल प्रदान करने के लिए उठाया गया है। अस्पतालों को सुनिश्चित करना होगा कि यह दिशा-निर्देश हर स्थिति में लागू हो।”

गर्भावस्था जांच और अन्य संवेदनशील मामलों में विशेष ध्यान

महिला मरीजों के संवेदनशील स्वास्थ्य परीक्षण, जैसे कि गर्भावस्था जांच, स्त्री रोग संबंधी समस्याएं, और मानसिक स्वास्थ्य परामर्श में यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि एक महिला स्वास्थ्यकर्मी या तीमारदार मौजूद हो। विशेषज्ञों का मानना है कि इन कदमों से महिला मरीजों का विश्वास और स्वास्थ्य सेवाओं में उनकी भागीदारी बढ़ेगी।

सख्ती से पालन न करने पर कार्रवाई की चेतावनी

मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने यह स्पष्ट किया है कि अगर किसी अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र में इन आदेशों का पालन नहीं किया गया, तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। सरकारी अस्पतालों में निगरानी के लिए विशेष समितियों का गठन किया गया है, जो समय-समय पर निरीक्षण करेंगी।

महिला मरीजों के लिए नए नियमों की आवश्यकता क्यों?

यह दिशा-निर्देश तब आए हैं जब देशभर में महिला मरीजों के साथ अनुचित व्यवहार और असुविधा की घटनाएं सामने आ रही थीं। कई मामलों में, महिला मरीजों को पुरुष डॉक्टरों से स्वास्थ्य सेवाएं लेने में झिझक महसूस होती थी, खासकर तब जब आसपास कोई महिला उपस्थित न हो।

महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का समर्थन

इस नए नियम का महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया है। उनका कहना है कि यह कदम न केवल महिला मरीजों के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, बल्कि उन्हें मानसिक शांति भी प्रदान करेगा।

अखिल भारतीय महिला सुरक्षा मंच की सदस्य राधा शर्मा ने कहा, “यह एक सकारात्मक बदलाव है। महिलाओं को स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करते समय अब और अधिक आत्मविश्वास महसूस होगा। हम चाहते हैं कि यह नियम देश के हर कोने में लागू हो।”

निजी अस्पतालों में जागरूकता अभियान

निजी अस्पतालों को इस दिशा में जागरूकता अभियान चलाने के लिए भी कहा गया है। सीएमओ ने बताया कि अस्पताल प्रबंधन को अपने कर्मचारियों और डॉक्टरों को इन नियमों के पालन के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए। साथ ही मरीजों को इन नई सुविधाओं और शिकायत प्रणाली के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए।

स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की दिशा में कदम

मुख्य चिकित्सा अधिकारी का यह कदम स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। इससे न केवल महिला मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता भी बढ़ेगी।

अस्पताल प्रबंधन के लिए सुझाव

  1. महिला स्वास्थ्यकर्मियों की नियुक्ति: अस्पताल प्रबंधन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पर्याप्त महिला स्वास्थ्यकर्मी उपलब्ध हों।
  2. कैमरे और सुरक्षा: संवेदनशील क्षेत्रों में सीसीटीवी कैमरों का उपयोग बढ़ाया जाए।
  3. प्रशिक्षण: अस्पताल कर्मियों को लैंगिक संवेदनशीलता पर नियमित प्रशिक्षण देना अनिवार्य किया जाए।
  4. शिकायत प्रणाली का प्रचार: महिला शिकायत निवारण समिति के कार्यों को प्रचारित किया जाए।

महिलाओं के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना ज़रूरी

महिला मरीजों के लिए यह नियम एक सकारात्मक पहल है, जो न केवल उनकी गरिमा की रक्षा करेगा, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं में उनके अनुभव को भी बेहतर बनाएगा। उम्मीद है कि इस तरह के दिशा-निर्देश देशभर में महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को अधिक सुरक्षित और विश्वसनीय बनाएंगे।



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