इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक अहम फैसले में कहा कि कानूनन दत्तक पुत्र भी सभी प्रयोजनों के लिए पुत्र के समान होता है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने लखनऊ नगर निगम को दिवंगत कर्मचारी के दत्तक पुत्र – शानू कुमार की अनुकंपा नियुक्ति के दावे पर दो माह में पुनर्विचार करने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने नगर निगम के उस आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि दत्तक पुत्र को अनुकंपा नियुक्ति के तहत नौकरी नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने कहा- अगर किसी के पास दत्तक ग्रहण विलेख (प्रमाणपत्र) है तो प्रशासनिक अफसर उस पर सवाल मत उठाएं।
न्यायमूर्ति श्रीप्रकाश सिंह की एकल पीठ ने यह फैसला याची शानू कुमार की सेवा मामले में दाखिल याचिका पर दिया। याची ने अपने दत्तक पिता, सेवाकाल में दिवंगत नगर निगम के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी रमेश की मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति देने की मांग की थी। नगर निगम ने शानू कुमार का दावा यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि दत्तक ग्रहण के समय उनकी आयु 18 वर्ष थी, जो हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के अनुरूप नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि एक बार दत्तक ग्रहण विलेख पंजीकृत हो जाने के बाद, उसकी वैधता पर सुनवाई की शक्ति केवल सक्षम सिविल न्यायालय को है, न कि किसी प्रशासनिक प्राधिकारी को। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अधिनियम, 1956 की धारा 12 और 16 के तहत, दत्तक पुत्र को सभी प्रयोजनों के लिए पुत्र माने जाने का प्रावधान है। अदालत ने नगर निगम के 2 सितंबर 2023 के आदेश को निरस्त करते हुए निर्देश दिया है कि याची के अनुकंपा नियुक्ति के दावे पर दो माह के भीतर पुनर्विचार किया जाए। इस आदेश के साथ कोर्ट ने याचिका मंजूर कर ली।
