फतेहपुर। बीते सालों में खनन पट्टेधारकों ने राजस्व को करीब 30 करोड़ की चपत लगाई है। अकेले एक खदान में 14 करोड़ का खेल हुआ। अब पट्टेधारक उच्च न्यायालय इलाहाबाद व अन्य कोर्ट की शरण में हैं। यहां मामले लंबित होने के कारण सरकार के खाते में राजस्व नहीं आ पा रहा है।
मौरंग पट्टों की ई-टेंडर और ओटीपी प्रक्रिया से काफी हद तक राजस्व बढ़ाने में खनन विभाग को मदद मिली। जिले में इसका ठीक उल्टा हो गया। यहां करोड़ों का खेल हो गया। हर साल विभाग से मिलने वाले राजस्व में पट्टेधारकों की बड़ी देनदारी हो जाती है। सवाल उठता है कि पट्टेधारक पर किश्त बकाया होने के बाद ओटीपी क्यों नहीं बंद की गई। पट्टेधारक को किस लाभ के लिए राहत दी जाती रही है। इसी वजह से बकाए के बाद भी खदानों का संचालन होता रहा। पट्टेधारकों को कोर्ट की शरण लेने से पट्टे भी निरस्त होने बच जाते हैं और बकाए के बावजूद फर्म काली सूची में नहीं डाली जाती है। उनके वाद कोर्ट में विचाराधीन रहते हैं। सीएजी की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि 2019 में अढ़ावल खदान की पट्टाधारक फर्म पर एक साल में ही 14 करोड़ रुपये का बकाया हो गया। पहली किश्त बकाया होने के बाद भी पट्टा संचालन नहीं रोका गया। इससे बकाया बढ़ता गया।
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इस साल के दो पट्टाधारकों पर 11 करोड़ का बकाया
वित्तीय वर्ष 2023-24 में संचालित मौरंग पट्टों में दो फर्मों को 11 करोड़ 76 लाख 83 हजार की नोटिस जारी की गई है। इनके पट्टों का संचालन मई माह में निरस्त किया गया था। पट्टा निरस्त होने के बाद पट्टेधारकों का कोई पता नहीं है। दरअसल फर्म में कई पार्टनर दिखाए जाते हैं। फर्म दूसरे राज्यों की होती हैं। ऐसे में विभाग आरसी नोटिस तक तामील कराने में मजबूर दिखाई देता है। पार्टनरों में एक शख्स जिले का होता है, लेकिन उसके पास देने के लिए कुछ नहीं रहता।
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एक फर्म का चार सालों में 53 लाख में निपटा था मामला
अवैध खनन और बकाए की कार्रवाई में पिछले चार सालों में मई 2020 में ही एक फर्म ने बकाया अदा किया है। बाकी किसी ने रकम जमा नहीं की। फर्म ने 53 लाख का बकाया चुकाया है।
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इन वित्तीय वर्ष में यह रहा बकाया
2019-2020
2020-2021
2021-2022
2022-2023
2023-2024
कोट्स
बकाया उनके कार्यकाल के पहले का है। संबंधित पट्टाधारकों को नोटिस जारी की गई है। उनके खिलाफ वसूली की आरसी जारी की गई है।
– राज रंजन-खनिज अधिकारी
आबकारी विभाग में भी राजस्व को 20 लाख का नुकसान
फतेहपुर। कैग की रिपोर्ट में शराब खपत और लाइसेंस फीस को लेकर भी बीते साल की तुलनात्मक रिपोर्ट में 20 लाख के राजस्व का चूना लगा है। जिले की करीब 20 शराब दुकानें ई-लॉटरी के बाद छूट गई थीं। इन दुकानों को कम बिक्री की वजह से छोड़ा गया था। आबकारी नीति के अनुसार, प्रतिवर्ष दुकानों का नवीनीकरण साढ़े सात प्रतिशत बढ़ाकर किया जाता है। नवीनीकरण न होने पर छूटी दुकान में लॉटरी की जाती है। लाॅटरी में भी दुकान की नीलामी न होने पर बीते साल की दर पर ही नीलाम की जाती है। ऐसे में फीस और करीब नौ हजार लीटर शराब की खपत कम होना बताया जाता है।