The tiger present in Rehman Kheda of Lucknow is still away from the reach of the forest department.

प्रतीकात्मक तस्वीर।
– फोटो : अमर उजाला

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तमाम ख़ाना-ब-दोशों में मुश्तरक है ये बात,

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सब अपने अपने घरों को पलट के देखते हैं।

इफ़्तिख़ार आरिफ़ साहब का ये शेर मेरे जैसों पर बिल्कुल सटीक बैठता है, जिनके घर अब उनके नहीं रहे। मैं भी अपने उसी घर को पलटकर देखने आया हूं, जहां हमारे पूर्वजों की रिहाइश हुआ करती थी। हे श्रेष्ठ मनुष्यों! मैं बेनाम बाघ बोल रहा हूं…। वही जिसे आप पिछले दो महीने से पकड़ने के लिए जतन कर रहे हैं। आज आपसे कुछ कहना चाहता हूं।

अब तक मेरी शिनाख्त भी बस एक बाघ के रूप में ही है। आपके वन विभाग ने मेरा नामकरण तक नहीं किया है। खैर, नाम में क्या रखा है। असल बात तो ये है कि जो जंगल हमारे घर हुआ करते थे, उन पर भी आपकी मनुष्यता ने आशियाने सजा लिए हैं। प्रकृति ने मनुष्यों के साथ वन्यजीवों को भी अधिकार दिया है कि वे स्वतंत्र रूप से अपना जीवनयापन करें। आपने तो बाकायदा इसके लिए कानून भी बनाया है लेकिन उसका अनुपालन आपकी अतिक्रमण रूपी मानसिकता की वजह से संभव नहीं हो पा रहा, जिससे हम अपने जंगलों में भी सुरक्षित नहीं हैं।

मैं उसी रहमानखेड़ा और आसपास के क्षेत्र में शायद भटक गया था। जहां बरसों पहले प्रकृति के सुरम्य वातावरण में वन्यजीव रहा करते थे। मुझसे पहले 2012 में भी एक बाघ आया था जिसे 105 दिन बाद रेस्क्यू के बाद आप लोगों ने पकड़ लिया था। तब उसका नाम आपने रहमान रखा था। नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान में कार्यरत डॉ. उत्कर्ष शुक्ला ने उस पर एक किताब भी लिखी थी, जिसका नाम था रहमानखेड़ा का बाघ। 2003 में भी भटककर आया मेरे परिवार का एक साथी 35 दिन तक इस क्षेत्र में रहने के बाद यहां से चला गया था।

दरअसल दशकों पहले यहां सिर्फ जंगल हुआ करते थे और यही जंगल हमारे घर थे। धीरे-धीरे आप मनुष्यों ने यहां कब्जा करना शुरू किया और रिहायशी बस्तियां बनने लगीं, गांव बसने लगे। ऐसे में हम वन्यजीवों का विचरण भी इस क्षेत्र में सिकुड़कर रह गया। आपके घर में जब कोई कब्जा करता है तो आपके यहां उसे बेदखल करने का कानून है लेकिन हमारे घरों में कब्जा करने के बाद आप पर किसी कानून का पालन नहीं करते। न ही आपके लिए किसी प्रकार के दंड का प्राविधान है।

जहां तक शिकार की बात है तो मुझे भी भूख लगती है और इसके मिटाने के लिए मुझे शिकार तो करना ही पड़ेगा। मुमकिन है कि एक दिन मुझे आप पकड़ भी लें और चिड़ियाघर में कैद भी कर दें लेकिन इससे हम वन्यजीवों की समस्या कम नहीं होगी। हमें भी अपना घर चाहिए जहां हम स्वछंद रूप से विचरण कर सकें। लगातार बढ़ते कंक्रीट के जंगल हमारे पुरातन जंगलों को निगलते जा रहे हैं। इस पर आपका पूरा समाज मौन है, आखिर क्यों।

अजब संयोग : पिछली बार भी कुंभ के दौरान ही आया था बाघ

इसे संयोग ही कहा जाएगा कि वर्ष 2012 में जब बाघ रहमानखेड़ा में आया था और इस क्षेत्र में 105 दिन तक रहा था, उस वक्त प्रयागराज में कुंभ का आयोजन चल रहा था। इस बार भी ऐसा ही संयोग बना है कि बाघ महाकुंभ के दौरान ही यहां चहलकदमी कर रहा है।



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