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They looted while firing, and beat them with butts when they protested

रमेश चौरसिया। 
– फोटो : संवाद

सिरसाकलार। थाना क्षेत्र के जहटौली गांव निवासी रमेश चौरसिया अब करीब 75 वर्ष के हो चुके हैं। अपने साथ हुई घटना की जानकारी देते हुए वह भावुक हो गए। बताया कि वर्ष 1981 में अचानक कुसुमा ने गांव में धावा बोल दिया। वह उनके घर में घुस गई और जमकर लूट पाट की। उनकी मां कुंजा देवी ने जब इसका विरोध किया तो कुसुमा ने बंदूक की बटों से उनकी पिटाई की थी। इसके बाद दहशत फैलाने के लिए उसे गांव में फायरिंग की थी। इससे गांव के लोग घरों में दुबक गए थे। उन्होंने पुलिस को सूचना दी थी, लेकिन उस समय पुलिस की स्थिति बहुत दयनीय थी। डकैतों के जाने के बाद ही पुलिस आती थी। (संवाद)

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अपने ही गांव में डाली थी डकैती, जमकर की थी मारपीट

सिरसाकलार। जिस गांव में पली बड़ी उसी गांव में जब डकैत बनकर अपने गैंग के साथियों के साथ कुसुमा नाइन वर्ष 1985 में टिकरी गांव पहुंची, तो उसने गांव के ही रामरूप दुबे के यहां डकैती डाल दी। परिजनों ने विरोध किया तो उसने परिजनों को बुरी तरह मारापीटा। ग्रामीणों ने बताया कि वह इतनी निर्दयी हो चुकी थी कि वह महिलाओं को भी नहीं छोड़ती थी।

जिन्हें सुरक्षा के लिए लगाया, वही लगाते थे सुरक्षा की गुहार

उरई/रामपुरा। हुकुमपुरा गांव के ग्राम प्रधान को जब डकैत कुसुमा नाइन ने पूरे परिवार सहित जान से मारने की धमकी दी तो परिवार उरई आ गया और दर दर की ठोकरे खाने लगा। वह एसपी से मिले, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद वह तत्कालीन डीएम दीपक कुमार से मिले। तब उन्होंने पूरे परिवार की सुरक्षा को देखते हुए गांव में पांच पुलिस कर्मियों को तैनात कर दिया। जब पूरा परिवार गांव पहुंचा तो इसकी जानकारी कुसुमा को लगी तो उसका खून खौल उठा और वह गांव पहुंच जाती और गोली बारी करने लगती। इस पर उनकी सुरक्षा में लगे नौजवान सिपाही उनसे ही मदद की गुहार लगाते थे और गिड़गिड़ाते हुए कहते थे, कि आप कह दो कि हमें सुरक्षा नहीं चाहिए। कोई सिपाही शादी न होने की बात कहता था, तो कोई परिवार की दुहाई देता था। दबाव को देखते हुए उन्होंने सुरक्षा वापस देने के लिए प्रार्थना पत्र दिया और कुछ समय बाद कुसुमा का आतंक समाप्त हो गया।



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