भारत का इतिहास पन्नों से लिया गया है। पढ़ें कुछ जानकारी

1857 के विद्रोह की शुरुआत 10 मई के दिन ही हुई थी और ये देखना बेहद अचरज भरा है कि 160 साल बीत जाने के बाद भी ये भारत, पाकिस्तान और ब्रिटेन के लेखकों को प्रेरित करता है. यही वजह है कि इस गदर पर हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में ढेरों किताबें मौजूद हैं.


अंग्रेज कैंटोनमेंट में आधिकारिक रूप से अंग्रेजों के लिए था भारतीय महिलाओं का चकलाघर

इतिहास जानना जारूरी है। एक विडियो माध्यम से समझाते हैं




भारतीय लेखक उर्दू और अंग्रेजी के बहाने मुस्लिम और अंग्रेज प्रेमी होते हैं। वह लोग उद्धारक हैं उनके लिए और उनका अपना लोक पिछड़ा! वह पिछड़ी मानसिकता लेकर इधर उधर घुमते हैं क्योंकि उन्हें अपनी उल्टी सीधी कहानियों के लिए अंग्रेजों का प्रमाणपत्र चाहिए। पर इन सभी में जो हीनभावना होती है, वह इन्हें अपने लोक की उस प्रताड़ना की ओर देखने से निरंतर रोकती है, जिसके मूल में यही अंग्रेज हैं।

आइये आज जानते हैं कि कैसे अंग्रेजों ने अपने सैनिकों की अय्याशी के लिए,                                                                              उनकी हवस को पूरा करने के लिए                            ‌‌                                              ‌                                    भारतीय लड़कियों को आधिकारिक रूप से चकलाघर में बैठाया था।                                                                      ‌         अंग्रेजों ने अपने इस पाप को छिपाने के लिए बहाना बहुत अच्छा बनाया था कि चूंकि उनके सैनिक बिना बीवियों के यहाँ पर आते हैं तो उनके पास अपने शरीर की जरूरतों को पूरा करने के लिए साधन नहीं होता, इसलिए बलात्कार करने से बेहतर है कि आधिकारिक रूप से चकलाघर ही चलाया जाए।



the Queen’s Daughters in India नामक पुस्तक में एक अंग्रेज महिला ने ही अपने लोगों द्वारा भारतीय महिलाओं पर किए जा रहे अत्याचारों को सविस्तार बताया है। जोसेफिन एफ बटलर ने लिखा है कि वह चाहती हैं कि उनके देश की महिलाएं भारत में हो रहे इन अत्याचारों पर आवाज़ उठाएं। उन्होंने लिखा था कि वह एक निष्ठावान अंग्रेज महिला हैं, और उन्हें अपने देश से बहुत प्यार है, इसलिए वह यह लिख रही हैं।

क्या लिखा है पुस्तक में:

पुस्तक आपको एक ऐसी काली दुनिया में ले जाती है जहाँ पर भारतीय या कहें हिन्दू स्त्रियों की पीड़ा का काला संसार है, यहाँ पर वह बातें हैं, जो इन गुलाम लेखकों की रचनाओं में नहीं मिलती है। इसमें लिखा है कि भारत में लगभग एक सौ सैन्य कंटोंमेंट्स थे। सैनिकों की यौन इच्छाओं को पूरा करने के लिए एवं यौन रोगों से बचाने के लिए कन्टेजीयस डिजीज एक्ट्स के रूप में एक पूरी व्यवस्था बनाई गयी थी, जिन्हें कैंटोंमेंट रेग्युलेशन के अंतर्गत किया गया, और इसकी मुख्य विशेषताएँ थीं

“हर कंटोंमेंट में एक हजार से अधिक सैनिक रहा करते थे। इन सैनिकों के लिए बारह से लेकर पंद्रह स्थानीय महिलाएं हुआ करती थीं, जो हैसियत या मामले के अनुसार दिए गए घरों या टेंट में रहा करती थीं, जिन्हें चकला कहा जाता था। इन महिलाओं को केवल अंग्रेजी सैनिकों के साथ ही सोना होता था और उन्हें कैंटोनमेंट मजिस्ट्रेट के द्वारा रजिस्टर किया जाता था, और लाइसेंस के टिकट दिए जाते थे।”

सरकारी चकलाघरों के साथ साथ कैंटोनमेंट में अस्पताल भी हुआ करते थे, जिनमें कैदियों को उन की इच्छा के विरुद्ध रखा जाता था। इन बंद अस्पतालों में महिलाओं को अपने शरीर की यह जांच कराने के लिए जाना होता था कि कहीं उनमें उन सैनिकों के साथ बने हुए सम्बन्धों के कारण कोई बीमारी तो नहीं हो गयी है और शरीर की जांच ही एक बलात्कार से कम नहीं होती थी।”

जैसे जैसे आप इस पुस्तक में आगे बढ़ते हैं, भारतीय महिलाओं के इस आधिकारिक अंग्रेज सरकार द्वारा यौन शोषण की कहानियाँ आपको बेचैन कर देंगी।

जैसे अकबर के हरम में एक बार लड़की आती थी तो अर्थी ही जाती थी, ऐसे ही इन चकलाघरों में लडकियां आती थीं, तो अर्थी में ही जाती थीं। वह बाहर नहीं जा सकती थीं, उन्हें बीमारी हो जाती थी, तो पहले उन बीमारियों को ठीक किया जाता था और फिर जब वह ठीक हो जाती थीं, तो फिर से उसे यातनागृह में भेज दिया जाता था।

और यह सब वही अंग्रेज कर रहे थे, जिन्हें वामपंथी लेखक अपना खुदा मानते हैं।

रेजिमेंट के साथ ही लड़कियों को भेजा जाता था और अगर अधिक सैनिक आ जाते थे तो और लडकियां खरीदी जाती थीं। और सैनिकों को हर प्रकार का आराम देने के लिए इन लड़कियों के लिए हर प्रकार की सुख सुविधासंपन्न टेंट या घर बनाए जाते थे। जवान और सुन्दर लडकियों की मांग की जाती थी। परन्तु उन्हें अपनी देह के बदले जो पैसे मिलते थे वह बेहद कम हुआ करते थे।

और उन्हें वर्जिन ही लड़कियां चाहिए होती थीं।

इन लड़कियों को जो यौन संक्रमण होता था, उसकी पर्याप्त जाँच नहीं होती थी एवं कभी कभी वह बीमारी में ही यौन सेवाएँ बेचने लगती थी।



वह बाहर इसलिए भी नहीं जा सकती थी क्योंकि उसे इस स्थिति में कौन अपनाता। इस पुस्तक में लिखा है कि जब उन्हें काम से हटाया जाता था तो, हो सकता है कि वह उन लोगों से सैकड़ों मील दूर हो, जिन्हें वह जानती थी।और भारत में लगभग हर दरवाजा उनके लिए बंद हो जाता था। वह कहाँ जाती थीं, उनके साथ उस कैंट से बाहर निकलने पर क्या होता था, कोई नहीं जानता था और उनके शरीर का सुख लेने वाले कभी यह जानने की कोशिश भी नहीं करते थे।

इतना लंबा अरसा बीत जाने के बाद भी इसके प्रति लोगों की दिलचस्पी कम नहीं हुई है.                                                                                The Times London के नामी पत्रकार सर विलियम रसेल 1857 में भारत आए थे. वे क्रीमिया युद्ध को कवर करके यहां आए थे.

इस दौरान उन्होंने कई विचित्र रिपोर्ट लिखी थीं, जिसमें शाहजहांपुर में एक अंग्रेज भूत होने की रिपोर्ट शामिल थी. एक रिपोर्ट बिना सिर वाले घुड़सवार की थी, जो उनके मुताबिक उत्तर भारत के शहरों में हर रात देखा जाने लगा था. इसके अलावा वो जहां भी गए वहां हुई तोड़-फोड़ का ब्योरा भी उन्होंने लिखा.

1857 का विद्रोह ‘दबाने’ वाले की मौत जेन रॉबिंसन की पुस्तक ‘अल्बियन के एंजिल्स- भारतीय गदर की महिलाएं’ भी एक दिलचस्प प्रकाशन है. इसके कुछ अंशों को रेखांकित किए जाने की ज़रूरत है.

जब दिल्ली पर सिपाहियों का कब्जा हो गया, तब कुछ विदेशी महिलाओं को भी मुश्किल हालात से गुजरना पड़ा था. इनमें एक हैरियट टाइटलर भी थीं, जो कैप्टन रॉबर्ट टाइटलर की पत्नी थीं.

रॉबर्ट 38वीं नेटिव इंफेंट्री में तैनात थे, जब अंग्रेजों ने दिल्ली को खाली किया तो उनकी पत्नी आठ महीने की गर्भवती थी. उन्हें दिल्ली के घने रिज इलाके में एक बैलगाड़ी में अपने बच्चे को जन्म दिया था.

सिंधिया घराने के अंग्रेज़ों के साथ कैसे रिश्ते थे?

टेलीग्राम- 1857 का विद्रोह ‘दबाने’ वाले की मौत दीमेरी बेबी को पेचिश हो गया (हैरियट के अनुमान के मुताबिक) और लग नहीं रहा था कि वो एक सप्ताह से ज़्यादा जीवित रहेगा. वे एक फलालेन (एक तरह का कपड़ा) के छोटे से टुकड़े पर था, और कुछ नहीं था. लोरी की जगह चेतावनी की आवाज़ें, गोलियों की आवाज़ थीं.”

“बेबी के जन्म के एक सप्ताह के बाद, मानसून या गर्मी की बारिश शुरू हो गई. तेज बारिश में फूस की छत टपकने लगी और कुछ ही देर में हम सब पानी में सराबोर हो गए. किस्मत की बात थी, कि हथियार रखने की एक जगह खाली हुई थी तो मेरे पति हमें वहां ले गए.”

बाद में हेरियट बुज़ुर्गावस्था तक जीवित रहीं और 20वीं शताब्दी के पहले दशक में उनका निधन हुआ.

इतिहास के पन्नों से

बाजीराव के वंशजों को कोई नहीं पहचानता!दी।              मुसलमान बनना पड़ा
एक दूसरी पीड़िता एमेलिया थीं, जिन्हें 27 जून को सतीचौड़ा घाट पर हुए नरसंहार के दौरान गंगा में फेंक दिया गया था. उन्हें मोहम्मद इस्माइल ख़ान नाम के एक घुड़सवार ने बचाया. वो उन्हें हाथ से पकड़ कर और घोड़े के बगल में बांध कर आगे बढ़ा.” एमेलिया विद्रोह शुरू होने से कुछ ही दिन पहले दिल्ली से निकलीं थी और उनके कानपुर पहुंचते पहुंचते सैनिक विद्रोह शुरू हो गया.

मुझे घाट से तीन मील दूर एक सूबेदार की झोपड़ी तक ले जाया गया. वहां मुझे उच्च जाति की महिलाओं के कपड़े पहनने को दिए गए. सूरज की रोशनी में मेरा चेहरा मुरझाने लगा था, ऐसे में बंदी बनाने वाले के लिए मुझे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना आसान हो गया था.”

कुछ घटानाओं तस्वीरें देखिए



156 साल बाद पड़दादी के क़दमों की तलाशदी

इतिहास की सबसे ‘ताक़तवर’ कंपनी की कहानीदी

एमेलिया एक बड़े से टेंट में कई दिन रहीं, फिर उन्हें सिपाही इलाहाबाद ले गए. वो वहां से दिल्ली निकलने वाले थे, लेकिन अंग्रेजों की चुनौती को देखते हुए उन्होंने फर्रुखाबाद का रास्ता चुन लिया और उन्हें कहा गया कि तुम्हें मार देंगे.”

“एमेलिया के मुताबिक़ मौलवियों ने उन्हें धर्म बदलने की सलाह दी, उन्होंने कहा कि अगर तुम हमारा धर्म अपना लेती हो तो तुम्हारी रक्षा करेंगे. इसके बाद मुझे लखनऊ भेज दिया गया जहां मैं एक रंगरेज की झोपड़ी में दो महीने तक रही. बाद में मुझे बंदी बनाने वाले ने ब्रिटिश सैनिकों को मुझे सौंपकर जीवनदान दिया.भयानक क़त्लेआम
2 जून, 1857 को जब सिपाही सीतापुर की ओर बढ़े तब मैडलिन जैकसन अपने भाई और दूसरे अंग्रेज परिवारों के साथ जंगल में छिपने चली गईं.

मैडलिन तो पांच महीने बाद जीवित बच गईं लेकिन उनके भाई की हत्या हो गई. मैडलिन उस वक्त के लखनऊ के एक्टिंग चीफ़ कमिश्नर की भतीजी थीं.

ब्रिटिश सैनिकों ने बाद में बर्बरता से इसका बदला लिया.

रिचर्ड बार्टर याद करते हैं, “ये भयानक था, हमारे घुड़सवार सैनिकों और तोपों ने दुश्मन को कुचल कर रख दिया. उनके शव गल गए थे और बदूब काफ़ी भयानक थी.”

झांसी की रानी का ऐतिहासिक पत्र

अंग्रेजों के ‘सबसे जांबाज़ दुश्मन’                                            की खोज जहाँ विद्रोही सैनिकों के बर्बर बर्ताव की ख़ासी चर्चा हुई, वहीं विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों ने भी काफ़ी जुल्म किए.

हज़ारों लोगों की हत्या हुई, सैकड़ों महिलाएं मारी गईं. इनमें बहादुर शाह के हरम की महिलाएं शामिल हैं. बच्चों को भी नहीं छोड़ा गया.

ये कत्लेआम ‘अल्बियन के एंजिल्स’ में जितना बताया गया है, उससे कई गुना ज़्यादा है. चाहे वो भारतीय रहे हों या फिर अंग्रेज, जिन्हें ये सब झेलना पड़ा उनके लिए ये दुर्भाग्यपूर्ण ही था.

By Parvat Singh Badal (Bureau Chief) Jalaun✍️

A2Z NEWS UP Parvat singh badal (Bureau Chief) Jalaun ✍🏻

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *