उत्तर प्रदेश में महिला आर्थिक सशक्तीकरण की दिशा में बड़ा बदलाव सामने आया है। हाल ही में जारी डब्ल्यूईई (महिला आर्थिक सशक्तिकरण) सूचकांक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में महिला श्रम भागीदारी वर्ष 2017-18 के 14 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में 36 प्रतिशत तक पहुंच गई।

ये सूचकांक संकेत है, जिससे पता चलता है कि उत्तर प्रदेश की महिलाएं अब पीछे नहीं बल्कि आगे खड़ी हैं। 2017-18 में महिला श्रमशक्ति की भागीदारी राष्ट्रीय औसत से काफी नीचे थी। बीते वर्षों में राज्य सरकार ने महिलाओं को सुरक्षित व सम्मानजनक कामकाजी माहौल दिया। सरकारी नौकरियों में महिलाओं की विशेष भागीदारी, रात की शिफ्ट में काम करने की अनुमति से लेकर औद्योगिक इकाइयों में अवसरों की वृद्धि तक, सभी नीतिगत निर्णयों में महिलाओं को केंद्र में रखा गया।

रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023-24 में जहां भारत की महिला श्रम भागीदारी दर 45 प्रतिशत है, वहीं उत्तर प्रदेश की दर 36 प्रतिशत रही। यह आंकड़ा भले ही देश की तुलना में थोड़ा कम हो, लेकिन 2017-18 में यूपी की भागीदारी दर मात्र 14 प्रतिशत थी, जो भारत के 25 प्रतिशत के औसत से काफी नीचे थी। इस लिहाज से देखा जाए तो उत्तर प्रदेश ने इन सात वर्षों में एक लंबी छलांग लगाई है।

खतरनाक श्रेणी के कारखानों में काम की अनुमति बड़ा कदम

औद्योगिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के प्रयासों की दिशा में सरकार ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। महिलाओं को खतरनाक श्रेणी के 29 प्रकार के कारखानों में काम करने की अनुमति देना एक बड़ा कदम है। यह अनुमति कुछ विशेष शर्तों और सुरक्षा मानकों के अधीन दी गई है। श्रम एवं सेवायोजन विभाग के मुताबिक कारखानों में पुरुषों के समान कार्य के लिए समान वेतन, ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकरण में महिलाओं की 53 प्रतिशत भागीदारी, निर्माण क्षेत्र में 34.65 प्रतिशत महिला श्रमिक ये सभी संकेत देते हैं कि राज्य में महिलाओं की भागीदारी वास्तविक परिवर्तन के रूप में उभर रही है। इससे महिला श्रमिकों को 10 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूह बनाकर 1 करोड़ से अधिक महिलाओं को आर्थिक रूप से जोड़ने का कार्य भी किया है।



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