Why are leaders leaving SP and joining other parties, what will be its impact in Lok Sabha elections

पार्टी में सक्रियता बढ़ाने के लिए अखिलेश ने बीते दिनों यात्रा की।
– फोटो : अमर उजाला

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विधानसभा चुनावों के परिणाम के बाद से सपा छोड़कर जाने वाले नेताओं का एक सिलसिला शुरू हो गया है। आखिर क्या वजहें हैं जिसके चलते सपा अपने नेताओं को सहेज नहीं पा रही है? 

 लोकसभा चुनाव की दुंदुभि बजने ही वाली है, पर सपा अपने नेताओं को ही नहीं सहेज पा रही है। कई पुराने दिग्गज पार्टी से किनारा कर चुके हैं, जबकि कई दूसरे दलों में जाने के लिए तैयार बैठे हैं। इन्हें अपने साथ रोके रखने की पार्टी के भीतर कोई कारगर रणनीति भी नहीं दिख रही है।

हाल ही में कई बार के सांसद व विधायक रवि प्रकाश वर्मा और उनकी बेटी पूर्वी वर्मा सपा छोड़ कांग्रेस का हाथ थाम चुके हैं। उससे पहले नेताजी के समय से सपा में सक्रिय रहे सीपी राय भी कांग्रेस में जा चुके हैं। छात्र सभा के प्रदेश अध्यक्ष दिनेश यादव और मुलायम सिंह यूथ ब्रिगेड के प्रदेश अध्यक्ष रहे शैलेंद्र गुप्ता ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया। 

लोहिया वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे प्रदीप तिवारी, बरहज से सपा के विधानसभा प्रत्याशी रहे पीडी तिवारी और युवजन सभा के प्रदेश अध्यध रहे बृजेश यादव भी सपा पर तमाम आरोप लगाते हुए बाहर जा चुके हैं। सूत्रों के मुताबिक, चुनाव के वक्त तो रूठे हुए पार्टी जनों को मनाने का काम बड़े स्तर पर होना चाहिए, लेकिन यहां तो पुराने नेता ही छिटक रहे हैं। 

इसकी मुख्य वजह कोई कारगर रणनीति का न होना बताई जा रही है। पार्टी के एक नेता कहते हैं कि समाजवादी वैचारिक सिद्धांतों पर पहले की तरह काम नहीं हो रहा है, जिसके चलते भी यह स्थिति पैदा हो रही है। सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि कोई भी प्रमुख नेता पार्टी छोड़कर नहीं जा रहा है। जाने वाले वही नेता हैं जो या तो अपनी प्रासंगिकता खो बैठे हैं या फिर पार्टी में कभी अहम जिम्मेदारी पर नहीं रहे।

 



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