Lucknow : Counterfeit drugs business running through coolies and couriers

नकली दवा (सांकेतिक)
– फोटो : संवाद

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प्रदेश में नकली दवाओं का कारोबार कुली और कोरियर कंपनियों के जरिए चल रहा है। नकली दवा गैंग से जुड़े लोग छोटे-छोटे पैकेट के जरिए दवाएं एक शहर से दूसरे शहर में पहुंचा रहे हैं। यह खुलासा पकड़े गए लोगों से पूछताछ में हुआ है। इस गैंग के लोग इतने शातिर हैं कि एक इलाके से दूसरे इलाके में दवा पहुंचाने की जिम्मेदारी अलग-अलग लोगों को देते हैं।

वाराणसी में पकड़ में आए लोगों ने एसटीएफ और एफएसडीए की टीम को पूरे नेटवर्क की जानकारी दी है।

इसमें बताया कि हिमाचल प्रदेश से उत्तर प्रदेश में नकली दवाएं लाने के लिए बिल बाउचर भी फर्जी बनाते हैं। स्कैनर की मदद से किसी फर्म के पक्के बिल की तरह ही दूसरी नकली बिल तैयार कर लेते हैं। उसके जरिए दिल्ली के आगरा, लखनऊ, कानपुर, वाराणसी सहित अन्य शहरों में दवा पहुंच जाती है। बस स्टैंड पर पहले से मौजूद गिरोह का सदस्य कुलियों की मदद से उसे बाहर निकालता है। यहां से दवाएं स्टैंड के आसपास मौजूद गोदाम में पहुंचाई जाती हैं।

यहां दो तरह के पैकेट बनाते हैं। बड़ा पैकेट दूसरे राज्य अथवा शहर के लिए और छोटा पैकेट कोरियर कंपनी के लिए तैयार होता है। बड़े पैकेट को फिर बस पर पहुंचाया जाता है और संबंधित स्थान पर बस पहुंचते ही वहां पहले से मौजूद गिरोह के सदस्य पैकेट को रिसीव कर लेते हैं। इसी तरह स्थानीय बाजार के लिए छोटे-छोटे पैकेट बनाए जाते हैं। इस पैकेट को कोरियर कंपनी के जरिए विभिन्न बाजारों में पहुंचाया जाता है। इसके लिए गिरोह के लोगों ने बाकायदा झोलाछाप, विभिन्न मेडिकल स्टोरों के नंबर और पते इकट्ठा कर रखे हैं।

सूत्रों का कहना है कि पूछताछ के आधार पर नए सिरे से रणनीति तैयार की गई है। अब एसटीएफ की ओर से कुलियों और कोरियर कंपनियों पर निगरानी बढ़ा दी गई है। एसटीएफ के रडार पर स्थानीय स्तर पर काम करने वाली कई कोरियर कंपनियां भी हैं। अब इस रैकेट में शामिल ज्यादा से ज्यादा सदस्यों तक पहुंचने का प्रयास किया जा रहा है।

यूं शुरू हुआ सफर

एसटीएफ की गिरफ्त में आए बुलंदशहर के अशोक ने बताया कि इंटरमीडिएट के बाद उसने एक कपनी में नौकरी की, फिर आटो चलाने लगा। उसे नीरज नाम का व्यक्ति मिला और दोनों मिलकर नकली दवाओं की ढुलाई में लग गए। वह 2019 में अमरोहा में नकली दवा के साथ पकड़ा गया। वहां से छूटने के बाद वाराणसी पहुंचा और यहां रोडवेज बस स्टेशन के पीछे किराये पर रहने लगा। इसी कमरे से छोटे पैकेट बनाकर दवाओं की आपूर्ति करता था।

कुछ के तैयार करते हैं बिल

हिमाचल प्रदेश में तैयार हुई नकली दवा को नामी-गिरामी पेटेंट दवा कंपनियों के नाम से ही पैक किया जाता है। इसके बाद कुछ दवाएं बिना बिल के रवाना की जाती हैं तो कुछ दवाएं नकली बिल से। ऐसा इसलिए करते हैं ताकि बीच में जांच हो तो कुछ दवाओं की बिल दिखा सकें।



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