मुजफ्फरनगर। Muzaffarnagar शहर के निजी विद्यालयों द्वारा अभिभावकों के शोषण के खिलाफ आंदोलन तेज़ हो गया है। हाल ही में क्रांतिसेना के पदाधिकारियों ने जिलाधिकारी उमेश मिश्रा से मुलाकात की और पब्लिक स्कूलों में हो रहे अभिभावकों के शोषण पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने आरोप लगाया कि निजी स्कूल शिक्षा को व्यवसाय बना चुके हैं और अभिभावकों को भारी फीस देने के बावजूद उनकी स्थिति दयनीय होती जा रही है।

निजी स्कूलों का बढ़ता दबाव और फीस का असमान ढांचा

पब्लिक स्कूलों में अभिभावकों से वसूली जाने वाली फीस दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। क्रांतिसेना के नेताओं ने कहा कि सरकारी स्कूलों की तुलना में निजी स्कूलों में नर्सरी कोर्स की फीस 600 रुपये के आस-पास होती है, जबकि निजी स्कूलों में यह फीस 5000 से 7000 रुपये के बीच होती है। अभिभावकों से यह बड़ी रकम वसूलने के बावजूद उन्हें स्कूल द्वारा तय किए गए दुकानदारों से पाठ्यक्रम और ड्रेस खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है। यही नहीं, पब्लिकेशन कंपनियों से 50 से 60 प्रतिशत तक कमीशन लिया जाता है, और अभिभावकों को महंगे पाठ्यक्रम, महंगी ड्रेस, और अन्य सामग्रियों को खरीदने के लिए बाध्य किया जाता है।

अभिभावकों के शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाते हुए

क्रांतिसेना के पदाधिकारियों ने यह भी आरोप लगाया कि पब्लिक स्कूलों ने एडमिशन प्रक्रिया को भी असंवैधानिक बना दिया है। एक बार विद्यार्थियों का एडमिशन हो जाने के बाद, स्कूलों में हर क्लास में नया एडमिशन शुल्क वसूलने की परंपरा शुरू कर दी गई है। इससे अभिभावकों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ता जा रहा है। हर वर्ष अतिरिक्त एडमिशन फीस वसूलने के कारण अभिभावकों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा, स्कूलों में पढ़ाने वाले अध्यापक और अध्यापिकाओं को भी वेतन की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। कई स्कूलों में अध्यापकों को उनके वास्तविक वेतन का आधा हिस्सा तक नहीं दिया जा रहा है। अधिकांश शिक्षक 15,000 से 20,000 रुपये की सैलरी की रिसीविंग पर साइन करते हैं, लेकिन उन्हें सिर्फ 5,000 से 7,000 रुपये का भुगतान किया जाता है।

मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन और पब्लिक स्कूलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग

क्रांतिसेना ने जिलाधिकारी को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपते हुए पब्लिक स्कूलों द्वारा की जा रही लूट-खसोट पर सख्त कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने कहा कि हर पब्लिक स्कूल में एनसीईआरटी (National Council of Educational Research and Training) का पाठ्यक्रम लागू किया जाए, ताकि बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके। इसके अलावा, अभिभावकों को मनमानी दुकानों से पाठ्यक्रम सामग्री खरीदने की छूट दी जाए, ताकि वे खुद अपनी पसंद और आवश्यकता के अनुसार किताबें और अन्य सामग्री खरीद सकें।

उन्होंने यह भी कहा कि हर पब्लिक स्कूल में एडमिशन के बाद हर क्लास में फिर से एडमिशन शुल्क लेने की अनिवार्यता को समाप्त किया जाए। क्रांतिसेना ने जिलाधिकारी से अनुरोध किया कि स्कूलों में अध्यापकों को उचित वेतन दिया जाए, जैसा कि शासनादेश में निर्धारित है।

शिक्षकों की स्थिति पर भी सवाल

क्रांतिसेना ने यह भी बताया कि पब्लिक स्कूलों में शिक्षकों की स्थिति भी बहुत गंभीर है। कई स्कूलों में शिक्षकों को पूरा वेतन नहीं दिया जाता, और वेतन के नाम पर उनके साथ धोखाधड़ी की जाती है। अधिकांश निजी स्कूलों में यह प्रथा बन चुकी है कि वे शिक्षकों से केवल औपचारिक रिसीविंग साइन कराते हैं और उन्हें कम वेतन देते हैं। इन स्कूलों की कमाई का मुख्य जरिया अभिभावकों से लिया जाने वाला शुल्क और कमीशन है, जो उन्हें पाठ्यक्रम सामग्री, ड्रेस, और अन्य उत्पादों की बिक्री से मिलता है।

क्रांतिसेना की मुहिम और राजनीति

इस आंदोलन में क्रांतिसेना के कई प्रमुख कार्यकर्ता और नेता सक्रिय रूप से शामिल हुए। मंडल प्रमुख शरद कपूर, महानगर प्रमुख देवेंद्र चैहान, नरेंद्र ठाकुर, अमित गुप्ता, उज्ज्वल पंडित, आशीष मिश्रा, आदित्य कश्यप, राजेंद्र पायल, हर्षित दीवान, रोहित धीमान, दीपक कश्यप, शैलेंद्र विश्वकर्मा, राकेश धीमान, अमित मित्तल, अरविंद शर्मा, राकेश सोनकर, विनीत वर्मा, सचिन कुमार, वेद प्रकाश विश्वकर्मा, वासु सक्षम आदि इस अभियान में उपस्थित थे। इन नेताओं ने जिला प्रशासन से अपील की कि वह पब्लिक स्कूलों में शिक्षा के नाम पर हो रहे शोषण को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए।

सरकारी स्कूलों से तुलना

यदि हम सरकारी और निजी स्कूलों की तुलना करें तो यह स्पष्ट होता है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता तो निश्चित रूप से बेहतर है, लेकिन निजी स्कूलों में पैसों की ताकत के कारण अभिभावक और छात्र अधिक आकर्षित होते हैं। हालांकि, यह भी सच है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर और शिक्षक की गुणवत्ता में कमी रही है। ऐसे में क्रांतिसेना की यह मांग कि हर निजी स्कूल में एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम लागू किया जाए, एक सकारात्मक कदम हो सकता है। यह पहल न केवल सरकारी स्कूलों की शिक्षा को मजबूत करेगी, बल्कि निजी स्कूलों की मनमानी फीस वसूली पर भी लगाम लगेगी।

पब्लिक स्कूलों पर सख्त कार्रवाई की आवश्यकता

पब्लिक स्कूलों के खिलाफ यह संघर्ष इसलिए जरूरी हो गया है क्योंकि इन स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता के बजाय पैसा कमाने की होड़ ज्यादा दिख रही है। जहां एक ओर शिक्षा के प्रचार-प्रसार की बात हो रही है, वहीं दूसरी ओर पब्लिक स्कूलों द्वारा शिक्षा के नाम पर जो मुनाफा कमाया जा रहा है, वह न केवल अनैतिक है, बल्कि अभिभावकों की आर्थिक स्थिति पर भी प्रतिकूल असर डाल रहा है। ऐसे में जरूरी है कि जिला प्रशासन और सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाएं।

क्रांतिसेना का यह आंदोलन महज एक विरोध नहीं, बल्कि शिक्षा के व्यवसायीकरण के खिलाफ एक मजबूत आवाज है, जो पूरे उत्तर प्रदेश में गूंज रही है। अब यह देखने वाली बात होगी कि जिलाधिकारी उमेश मिश्रा और प्रदेश सरकार इस मुद्दे पर क्या कार्रवाई करती है और क्या पब्लिक स्कूलों द्वारा किए जा रहे शोषण को रोका जा सकेगा या नहीं।

 



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