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यूपी में बिजली व्यवस्था – फोटो : अमर उजाला
विस्तार
पूर्वांचल एवं दक्षिणांचल के निजीकरण के लिए ट्रांजेक्शन एडवाइजर नियुक्ति की निविदा तिथि बढ़ा दी गई है। अब कंपनियां 10 मार्च तक निविदा भर सकेंगी। उधर, बिजलीकर्मियों ने शक्तिभवन सहित पूरे प्रदेश में विरोध प्रदर्शन किया। निजीकरण के पीछे भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। मुख्यमंत्री से पूरे मामले में हस्तक्षेप की मांग की।
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विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने शक्ति भवन पर प्रदर्शन करते हुए कहा कि निजीकरण का प्रस्ताव तैयार करने वाले प्रबंधन से जुड़े अधिकारी किसी न किसी रूप में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं। संघर्ष समिति ने कहा कि टीए की नियुक्ति में कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट का प्रावधान आरएफपी डॉक्यूमेंट में पहले रखा गया था। जनवरी माह में इसे हटा दिया गया। दोनों निगमों के राजस्व क्षमता का आकलन नहीं किया गया। यह इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 के सेक्शन 131 का खुला उल्लंघन है। संघर्ष समिति ने एलान किया है कि जब तक निजीकरण का प्रस्ताव रद्द नहीं किया जाता तब तक आंदोलन जारी रहेगा। इस दौरान शैलेंद्र दुबे, राजीव सिंह, जितेन्द्र सिंह गुर्जर सहित अन्य नेताओं ने संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से गुहार लगाई।
एक मंच पर आए सभी ऊर्जा संगठन
निजीकरण के मुद्दे पर सोमवार को हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान पहली बार ऊर्जा सेक्टर के सभी संगठन एक मंच पर आए। संयुक्त संघर्ष समिति के पदाधिकारियों के साथ ही राज्य विद्युत परिषद जूनियर इंजीनियर्स संगठन के अध्यक्ष अजय कुमार, पूर्व अध्यक्ष जीवी पटेल, विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा, विद्युत तकनीकी कर्मचारी एकता संघ के अध्यक्ष दिव्यांशु सिंह, ऑफिसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष आरपी केन सहित विभिन्न संगठनों के नेताओं ने संबोधित किया।
परामर्शदाता कंपनियों की खोलते रहेंगे पोल : वर्मा
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि पावर काॅर्पोरेशन को अब निजीकरण की जिद छोड़कर उपभोक्ता हित में बिजली व्यवस्था में जुटना चाहिए। उन्होंने एलान किया कि परामर्शदाता कंपनियों को किसी भी कीमत पर गलत तरीके से टेंडर प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लेने दिया जाएगा। हर स्तर पर उनकी पोल खोली जाएगी। उपभोक्ता परिषद ने कहा कि प्रदेश की सात कंपनियां ट्रांजेक्शन एडवाइजर के लिए निविदा डालने की तैयारी में थीं, लेकिन उन्होंने इन कंपनियों का लेखा-जोखा उजागर कर दिया। बैलेंस शीट के सामने आने के बाद कंपनियों ने पैर पीछे खींच लिए, जिसकी वजह से काॅर्पोरेशन को निविदा की तिथि बढ़ानी पड़ी।