Sitapur: 84 Kosi Parikrama started in Naimisharanya, showing a unique confluence of faith, tradition and spiri

84 कोसी परिक्रमा शुरू।
– फोटो : अमर उजाला।

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 आस्था, परंपरा और अध्यात्म के अनूठे संगम की 84 कोसी परिक्रमा का शनिवार की ब्रम्हबेला में शुभारंभ हो गया। नैमिष से डंका बजते ही रामादल धर्म यात्रा पर निकल पड़ा। परिक्रमा मार्ग पर जहां तक निगाह जाती आस्था का सैलाब हिलोरें मारता नजर आया। देश-विदेश के साधु-संत व श्रद्धालु परिक्रमा करने पहुंचे हैं। ढ़ोल-मंजीरे की करतल ध्वनि के मध्य भजनों पर झूमते श्रद्धालु और बोल कड़ाकड़ सीताराम का जयघोष नैमिष से कोरौना तक वातावरण में भक्ति रस घोलता रहा। मोक्ष व पुण्य की कामना से साधु-संत, बच्चे, युवा, बुजुर्ग, महिलाएं और दिव्यांग बड़े उत्साह से धर्म यात्रा कर रहे हैं। सतयुग से चली आ रही इस परिक्रमा में 11 पड़ाव हैं। परिक्रमा 11 मार्च को अपने अंतिम पड़ाव मिश्रिख पहुंचेगी। परिक्रमा मार्ग पर श्रद्धालुओं की सुविधा व सुरक्षा के लिए पुलिस, प्रशासन की टीमें लगाई गई हैं।

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नैमिषारण्य में रंग, बिरंगी लाइटों और गुब्बारों से सजा मुख्य प्रवेश द्वार मनमोहक छटा बिखेर रहा था। शनिवार की भोर तीन बजे से परिक्रमार्थियों ने आदि गंगा गोमती व चक्रतीर्थ में स्नान एवं दर्शन-पूजन का क्रम शुरू कर दिया। मां ललिता देवी मंदिर तिराहे पर ब्रम्हबेला में धर्म, आस्था और परंपरा का अद्भुत संगम अलौकिक व अविस्मरणीय छटा बिखेरता नजर आया। पहला आश्रम के महंत नारायण दास अपने शिष्यों समेत मां ललिता देवी तिराहे पर पहुंचते हैं। एक घोड़े पर सवार उनका शिष्य नगाड़े से सुसज्जित है। घोड़े पर सवार साधु डंका (नगाड़ा) बजाने लगता है। 

चक्रतीर्थ पुजारी राजनारायण पांडेय ने वैदिक मंत्रोचार शुरू किया। पारंपरिक पूजन के बाद नारियल तोड़कर भेंट किया गया। लाखों श्रद्धालुओं का कारवां राम नाम के जयकारे के साथ 84 कोसी परिक्रमा के पहले पड़ाव कोरौना की ओर निकल पड़ता है। परिक्रमा मार्ग पर धर्म, परंपरा व आस्था के अद्भुत दृश्य दिखाई दिए। कोई संत जहां फक्कड़ भाव से चिमटा बजाते हुए अपनी ही धुन में मस्त पुण्य पथ पर बढ़ा चला रहा था तो कोई साधु पालकी में बैठकर परंपरा का निर्वहन करता नजर आया। डमरू की धुन पर सबको मंत्रमुग्ध करते हुए तो कोई दंडवत करता हुआ परिक्रमा में शामिल है। कई श्रद्धालु अपने नन्हे-मुन्हे बच्चों के साथ साइकिल पर ही धर्म यात्रा पर आगे बढ़ता दिखाई दिया। युवा श्रद्धालु पैदल तो बुजुर्ग लाठी के सहारे और दिव्यांग ट्राई साइकिल से आस्था की डगर पर बढ़ते चले जा रहे थे।

 खंजड़ी की धुन तो कोई ढ़ोल-मंजीरे की थाप पर भजन-कीर्तन के साथ परिक्रमा में शामिल नजर आया। बोल कड़ाकड सीताराम, जय श्रीराम और नैमिष धाम की जय.. के गगनभेदी जयकारे एक अलग ही धार्मिक माहौल का अहसास करा रहे थे। यह धर्मयात्रा जब किसी गांव से गुजरती ग्रामीण दर्शन करने उमड़ पड़ते। महर्षि दधीचि के त्याग व प्राणियों के मोक्ष के लिए अस्थि दान से पहले की गई सिद्धि, बुद्धि व मुक्ति की परिचायक इस परिक्रमा में शामिल मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, उत्तरांचल, राजस्थान, दिल्ली, छत्तीसगढ़, बिहार, महाराष्ट्र आदि प्रदेशों समेत पड़ोसी देश नेपाल व भूटान के बड़ी संख्या में श्रद्धालु सनातन धर्म की परंपरा का पालन करते हुए खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।






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