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लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के कमर कसने के साथ ही प्रमुख विपक्षी दलों ने भी बिसात बिछानी शुरू कर दी है। इन दलों की मई या जून में दिल्ली से बाहर कहीं बड़ी बैठक (कांग्रेस) होगी। इसमें जदयू, राजद, झामुमो, सपा, तृणमूल कांग्रेस, भारत राष्ट्र समिति (भारास), एनसीपी और डीएमके सरीखी क्षेत्रीय शक्तियों का शामिल होना तय माना जा रहा है। जदयू नेता व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस संबंध में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव समेत इन दलों के सभी प्रमुख नेताओं से बात की है। हालांकि, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) को इसमें बुलाया जाएगा या नहीं, अभी यह तय नहीं है।
लोकसभा चुनाव में गठबंधन की संभावनाओं की तलाश के मद्देनजर नीतीश कुमार लगातार आईएनसी के शीर्ष नेतृत्व के अलावा इन क्षेत्रीय क्षत्रपों के संपर्क में हैं। हाल ही में नीतीश और उनके डिप्टी सीएम व राजद नेता तेजस्वी यादव लखनऊ में अखिलेश यादव से मुलाकात भी कर चुके हैं। सूत्रों के मुताबिक, इस दौरान नीतीश ने अखिलेश के साथ विस्तार से अपनी भावी रणनीति साझा की। इस पर सहमति बनी कि अगर गैर भाजपा शासित राज्यों की क्षेत्रीय सत्ताधारी पार्टियां या भाजपा शासित राज्यों में मुख्य विपक्षी क्षेत्रीय पार्टियां एक साथ आ जाएं तो आम मतदाताओं को मुतमईन किया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को मात दी जा सकती है।
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इस लिहाज से झारखंड में शासित झारखंड मुक्ति मोर्चा, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति और तमिलनाडु में शासित डीएमके को अहम साझीदार माना जा रहा है। एनसीपी नेता शरद पवार के भी अनुभव का पूरा लाभ लेने की भी रणनीति है। इन सभी दलों के नेताओं ने संपर्क बढ़ाया है। 27 अप्रैल को अखिलेश यादव ने दिल्ली में जाकर राजद नेता लालू प्रसाद नेता से कुशलक्षेम पूछी। लेकिन, माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव को देखते हुए किए जा रहे प्रयास तभी फलीभूत होंगे, जब नियमित अंतराल पर औपचारिक बैठकों का सिलसिला शुरू हो। अगर क्षेत्रीय शक्तियों के बीच बेहतर समन्वय हो गया तो कांग्रेस भी सीटों के बंटवारे के समय दबाव में रहेगी। एक अहम राजनीतिक सूत्र ने यह भी बताया कि इन बैठकों में भाजपा को परास्त करने के तरीकों के बारे में भी इन दलों के क्षत्रप अपने अनुभव साझा करेंगे। खास तौर पर भाजपा के प्रचार के तरीकों से सबक लेते हुए उनकी काट भी प्रस्तुत करेंगे।
पहले क्षेत्रीय दलों के शासन वाले राज्यों में होंगी बैठकें
क्षेत्रीय शक्तियों की बैठकें उन राज्यों में होंगी, जहां उनकी सरकारें हैं। इसके बाद अन्य राज्यों का चयन होगा, जहां मुख्य विपक्षी दल के रूप में कोई न कोई क्षेत्रीय दल है।