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आगरा पुलिस, – फोटो : संवाद
विस्तार
आगरा में बेशकीमती जमीनों पर कब्जा तब्दील कराने के ‘खेल’ में जेल गए लोग तो सिर्फ मोहरा हैं। नेता, पुलिस और अफसर पर्दे के पीछे असली खिलाड़ी हैं। जिन्हें एसआईटी छू तक नहीं पा रही। इस ‘खेल’ की बड़ी मछलियाें पर फर्जी मुकदमा से लेकर अभिलेखागार में रिकाॅर्ड बदलने से लेकर उच्च अधिकारियों को गुमराह करने तक में माहिर होने के आरोप हैं।
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फर्जी बैनामा कांड, जोंस मिल और बोदला कांड का विस्तृत स्वरूप है। जिस तरह मौजा घटवासन में ढाई हजार करोड़ रुपये की जमीन खुरबुर्द के लिए निबंधन विभाग के अभिलेखागार में जिल्द से पन्ने फाड़े गए। उसी तरह फतेहाबाद रोड की बेशकीमती जमीनों को हड़पने की साजिश रची गई। बोदला कांड में फर्जी मुकदमा में जगदीशपुरा थानाध्यक्ष को जेल जाना पड़ा था।
उसी तरह ताजगंज में जमीनों के कई फर्जी मुकदमों में पूर्व में तैनात रहे एक इस्पेक्टर की चर्चाएं हैं। यह इंस्पेक्टर एक पुलिस अधिकारी का कारखास माना जाता है। फतेहाबाद रोड स्थित कई जमीनों पर सत्ता से जुड़े नेताओं के इशारों पर मुकदमा दर्ज कर भूमि विवाद उत्पन्न किए।
लकीर की फकीर बनी एसआईटी
निबंधन विभाग के अभिलेखागार में कितने जिल्दों से पन्ने फटे। इसका सुराग एक महीने बाद भी एसआईटी नहीं लगा सकी। निबंधन विभाग के रिकाॅर्ड कीपर का एक रिश्तेदार भी जमीनों के खेल में शामिल बताया जा रहा है। आगरा विकास प्राधिकरण का एक भी अमीन भी चर्चित है।