Research reveals: 90 percent of sexual patients use social media excessively, get away from real life.

सोशल मीडिया का इस्तेमाल।
– फोटो : अमर उजाला।

विस्तार


 सोशल मीडिया पर फोटो, शॉर्ट्स और रील्स के रूप में मौजूद अश्लील सामग्री युवाओं को यौन स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं दे रही हैं। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के मनोरोग विभाग की ओपीडी में यौन समस्या वाले 16 से 25 वर्ष की आयु के करीब 90 फीसदी युवा सोशल मीडिया के अति उपयोगकर्ता हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक सोशल मीडिया का अति इस्तेमाल ही उनकी समस्याओं की वजह है।

Trending Videos

मनोरोग विभाग में यौन और वैवाहिक कल्याण क्लीनिक के प्रभारी प्रोफेसर आदर्श त्रिपाठी ने बताया कि रोजाना ओपीडी में 10 से 12 युवा ऐसे होते हैं जो यौन स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं लेकर आते हैं। इनमें से ज्यादातर युवा सोशल मीडिया पर रील्स, शॉर्ट्स और फोटो देखने में अच्छा खासा समय देते हैं। इसकी वजह से उनकी मस्तिष्क की प्रतिक्रियाएं बदल जाती हैं। इनमें वास्तविक जीवन के रिश्तों के प्रति संवेदनशीलता कम हो जाती है।

वास्तविक रिश्ते में खो देते हैं आकर्षण

प्रो. आदर्श के अनुसार सामान्य परिस्थितियों में वास्तविक जीवन में लोग अपने साथी को वैसे ही स्वीकार करते हैं, जैसा वह है। सोशल मीडिया पर लगातार अश्लील सामग्री देखने वालों का दिमाग अतिरंजित डिजिटल अनुभवों के प्रति अनुकूलित हो जाता है। इससे वास्तविक रिश्ते में आकर्षण कम हो जाता है। इससे साइकोजेनिक इरेक्टाइल डिसफंक्शन (ईडी) की समस्या होती है, जहां व्यक्ति शारीरिक कारणों के बजाय मानसिक स्थिति की वजह से यौन स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव करते हैं।

युवतियों के मन में शारीरिक छवि संबंधी समस्याएं

सोशल मीडिया का नकारात्मक प्रभाव युवकों के साथ ही युवतियों पर भी पड़ रहा है। प्रो. आदर्श त्रिपाठी ने बताया कि ऑनलाइन वीडियो और फोटो से कई युवतियों में खुद की शारीरिक छवि को लेकर मानसिक विकार हो जाता है। वे अपनी तुलना प्रभावशाली लोगों और संपादित छवियों से करना शुरू कर देती हैं। इससे उनमें आत्म-संदेह, चिंता बढ़ती है, साथ यौन आत्मविश्वास भी कम हो जाता है।

विशिष्ट नीति बनाने की जरूरत

प्रो.त्रिपाठी के मुताबिक देश में कम उम्र में स्मार्टफोन और इंटरनेट के इस्तेमाल और इस पर कोई अंकुश न होने की वजह से समस्या बढ़ रही है। आज सोशल मीडिया के जरिए अश्लील सामग्री हर किसी की पहुंच में हैं। इस पर अंकुश लगाने की जरूरत है। इसके लिए विशिष्ट नीति बनानी होगी, तभी इस समस्या से बचा जा सकता है।



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *